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विदेश से रक्षा उपकरण खरीद का मामला हो या देश में योजनाओं के लिए आवंटित राशि के गबन का मामला या फिर अन्य मदों में व्याप्त अनियमितता का मुद्दा हो; सभी पर सरकार को चाहिए कि निष्पक्ष व त्वरित जाँच करवाए. आरोप-प्रत्यारोप से वक़्त और धन दोनों की बर्बादी होती है.
कभी-कभी तो सरकार और प्रतिपक्ष के विचार एक जैसे लगते हैं. विगत साठ वर्षों में सरकारें आई और गईं, न सिर्फ कांग्रेस की बल्कि बीजेपी की भी सरकार बनी, खिचड़ी सरकारें भी आई. धीरे-धीरे गठबंधन की राजनीति में फैसलों को लेकर उलझने भी सामने आने लगी थी. इन सरकारों के कार्यकाल में कुछ ऐसे फैसले लिए गये जिससे देश के शान पर बट्टा लगा. बोफोर्स घोटाला, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रमंडल घोटाला, कोयला घोटाला कितने नाम गिनाऊ. लेकिन इन घोटालों में संलग्न लोगों से धन उगाही की प्रक्रिया का क्या हुआ ये पूछनेवाला कोई नहीं है. सब भूल गये. हाल के दिनों में अगुस्ता-वेस्टलैंड का मामला तुल पकड़ रहा है. ये भी भूल जायेंगे सभी. अगर कुछ याद रहेगा तो वह है एक बार फिर संसद का ठप्प पड़ जाना. और फिर अगर किसी बड़े कार्यक्रम में राष्ट्रपति जी अपनी चिंता व्यक्त करते हुए पाए जायेंगे और न्यायपालिका आंसू बहती नजर आएगी तो इसमें आश्चर्य नहीं होगा.
अतः राजनितिक दलों को चाहिए कि सत्ता प्राप्ति के बाद राजनितिक विद्वेष त्याग कर देश के हित में ज्यादा सोचना चाहिए. क्योंकि जो कुछ भी वो जनता के समक्ष दिखावा कर रहे हैं उससे जनता अच्छी तरह वाकिफ है. अब जनता समस्या नही सुनना चाहती. उसे तो परिणाम चाहिए. उसे जवाब चाहिए. उसे तो विकसित भारत चाहिए. काम चलाऊ लोकतंत्र नहीं चाहिए.
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रवि रौशन कुमार
दरभंगा, बिहार
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