Menu
blogid : 24006 postid : 1180948

आजकल लोग कला से अधिक कलाकार को तरजीह देने लगे हैं.

रवि रौशन कुमार
रवि रौशन कुमार
  • 9 Posts
  • 7 Comments

आजकल लोग कला से अधिक कलाकार को तरजीह देने लगे हैं. शब्द से अधिक वक्ता को तरजीह देते हैं. खेल से अधिक खिलाड़ी को तरजीह देते हैं. अभिनय से अधिक अभिनेता को तरजीह देते हैं. एक दौर था जब कोई बांसुरीवाला बांसुरी बजाते हुए गली से गुजरता तो लोग उसकी धुन सुनने के लिए ठहर जाते थे. यहाँ तक कि ट्रेन में, बस में, सड़क पर गीत गाकर कुछ लोगों का गुजारा चला करता था. लेकिन आज मोबाइल, टीवी, इन्टरनेट के ज़माने में लोग इन चीजों को नजरअंदाज कर रहे हैं. हाल ही में सोशल मीडिया पर एक विडियो काफी चर्चा में रहा है, जिसमे मशहूर गायक सोनू निगम अपना हुलिया बदलकर फूटपाथ पर बैठकर गाना गाते हुए देखे गये. शुरुआती कई घंटों तक तो लोग उनकी तरफ देखते भी नहीं; और जब देखते भी हैं तो कुछ देर रूककर चले जाते हैं. इसी बीच एक युवा उनको 12 रूपये देता है और अपने मोबाइल में उनके गीत को रिकॉर्ड करने की पेशकश करता है.
ऐसे प्रयोग पूर्व में भी कई कलाकारों ने किया है लेकिन निष्कर्ष यही निकला कि लोग अब कला के कद्रदान नहीं बल्कि कलाकारों के फैन होने लगें हैं; वैसे फैन होना बुरी बात नहीं है. लेकिन एक साधारण से दिखने वाले आम कलाकार के द्वारा अगर अद्भुत कला का प्रदर्शन किया जा रहा हो तो क्या उसे तरजीह नहीं मिलनी चाहिए?
कुछ आरी-तिरछी लकीरें खींचकर कुछ फिल्म स्टार या बड़ी हस्तियों की साधारण सी पेंटिंग करोड़ों में नीलाम होती है, वहीं साधारण सा कलाकार सड़क के किनारे बैठकर अपनी अद्भुत कला का प्रदर्शन करता है तो उसे चंद रूपये ही मिलते हैं.
हजारों रूपये खर्च करके लोग कलाकारों को सुनने बड़े-बड़े कार्यक्रम में जाते हैं लेकिन वहीं कलाकार जब वेश बदलकर मुफ्त में अपने कला का प्रदर्शन कर रहा हो तो लोग नजरअंदाज कर देते हैं.
ये वही बात हो गयी कि, सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित तीर्थ में ईश्वर के दर्शन करने जाते हैं. लेकिन दरवाजे पर आये भूखे भिखारी को डांटकर भगा देते हैं. ऐसा लगता है शायद हमारी संवेदनाएं मर चुकी है????
रवि रौशन कुमार
@raviraushan1992

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh