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बिहार सहित पुरे भारत में आजकल जितने भी अपराध हो रहे हैं, उसमे अधिकांश मामलों में देखा गया है कि अपराधी की उम्र 20 से 25 वर्ष के बीच है. बैंक लूट, तस्करी, अपहरण, हत्या, दुष्कर्म जैसे अपराध को अंजाम देने की विध्वंशक योजना इन युवाओं के दिमाग में कैसे उपजता है? ये एक ऐसा प्रश्न है जिसके जवाब की तलाश अगर की जाये तो हम पाते हैं कि, पारिवारिक एवं सामाजिक नियंत्रण का अभाव ही आज के युवाओं में उद्दंडता व स्वछंदता का भाव उत्पन्न कर है. जो उन्हें अपराध करने के लिए प्रेरित करता है. गुणवत्तापूर्ण व रोजगारोन्मुख शिक्षा के अभाव के चलते भारत में बेरोजगारी का प्रतिशत बढा है. कम समय में अधिक पाने की चाहत में युवाओं में ऐसे अपराध की भावना प्रबल होती जा रही है. आज अधिकांश युवा मादक पदार्थों के गिरफ्त में पड़ गया है. नशीली चीजों के सेवन के उपरांत सोचने-समझने की क्षमता ही ख़त्म हो जाती है, फिर वे आपराधिक घटना को अंजाम देते हैं. अधिकांश मामलों में पाया गया है कि अपराध के बाद अपराधी में पश्चाताप का भाव भी उत्पन्न होता है. शराबबंदी के कारण जहाँ एक ओर बिहार में अपराध कम होने की बात की जा रही है वहीं दूसरी ओर कई ऐसे आपराधिक मामले प्रकाश में आ रहे हैं जो इस अवधारणा को झुठला रहे हैं कि शराबबंदी अपराध को नियंत्रित करता है.
हमारे समाज में कई ऐसे लोग हैं जो व्यवस्था से नाखुश हैं, भ्रष्टाचार के शिकार हैं, गरीबी और बेरोजगारी से लाचार हैं. मगर वे अपराध का रास्ता नहीं चुनते हैं. क्योकिं उनमे नैतिकता है, देश के प्रतिष्ठा का ख्याल है. अतः आज जरुरत है युवा वर्ग में नैतिकता और देशप्रेम का भाव उत्पन्न करने की. प्रारंभिक कक्षाओं में नैतिक शिक्षा को अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा. हिंसक और अश्लील फिल्म और अन्य सामग्रियों के प्रसारण और प्रकाशन को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए. क्योंकि ये भी युवाओं कि दिग्भ्रमित करने का सबसे बड़ा माध्यम बनता जा रहा है.
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