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मोदी सरकार के दो वर्ष पुरे होने पर जिस प्रकार विभिन्न संचार माध्यमों से उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटा जा रहा है इसके औचित्य का निरीक्षण अनिवार्य है. क्योंकि पिछले दो वर्षों के दौरान सरकार के द्वारा जितनी भी योजनायें लागू की गयी उसके प्रचार-प्रसार हेतु पूर्व से ही बड़े पैमाने पर विज्ञापनों का सहारा लिया जा रहा है. भारत को ब्रांड बनाने के चक्कर में कब नरेन्द्र मोदी खुद ब्रांड बन गये पता ही नही चला. इन्टरनेट, मोबाइल, टीवी, अख़बार जैसे जन संचार माध्यमों से जिस प्रकार प्रधानमंत्री की ब्रांडिंग की जा रही है वो किसी से छुपी नहीं है. सरकारी खजाने से सैकड़ो करोड़ रूपये विज्ञापन पर खर्च किये जा रहे हैं. वैसे शुरुआती एक-दो वर्षों में किसी सरकार के कार्यों का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता और न ही इस आधार पर उनको फेल या पास का प्रमाण-पत्र दिया जा सकता. अगर देखा जाये तो अटल सरकार से लेकर मनमोहन सरकार तक शुरुआती वर्षों में ही अच्छे कार्य किये गये. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, भारत निर्माण, मनरेगा, सूचना का अधिकार कानून जैसे दर्जनों योजनायें शुरुआती वर्षों में ही अस्तित्व में आया. परन्तु आज इसके क्रियान्वयन की क्या स्थिति है सब जानते हैं. योजनाओं में हुई अनियमितता और घोटालों से हम सब वाकिफ हैं.
लोकतंत्र में व्यक्ति विशेष का महत्त्व नहीं होता और होना भी नहीं चाहिए. लेकिन वर्तमान में प्रत्येक राजनितिक दलों के भीतर व्यक्ति पूजा की नकारात्मक प्रवृति का चलन बढ़ा है. चाहे हो सोनिया-राहुल के प्रति वफ़ादारी निभाने के लिए कार्यकर्ताओं से हलफनामा भरवाने की बात हो या शहरी विकास मंत्री सहित अधिकांश मंत्रियों द्वारा मोदी को भगवान के द्वारा भेजा गया दूत की संज्ञा दिया जाना. इतना ही नहीं विभिन्न क्षेत्रीय पार्टियों में भी व्यक्ति पूजा का स्पष्ट रूप देखने को मिलता है दक्षिण में जयललिता के प्रति उनके मंत्रियों और नेताओं का नतमस्तक होना इसका प्रमाण है. अतः राजनितिक पार्टियों के भीतर भी लोकतंत्र का होना आवश्यक है. दल में सभी के आत्मसम्मान और स्वाभिमान का ख्याल रखा जाना चाहिए.
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