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सरकार अथवा व्यवस्था के विरोध में आवाज़ बुलंद करने का अधिकार आम जनता को प्राप्त है. आज विरोध व आन्दोलन के नाम पर सरकारी संपत्ति को क्षति पहुँचाना, आग्नेयास्त्र का प्रदर्शन करना, बहु-बेटिओं के इज्ज़त-आबरू के साथ खिलवाड़ करना, आम जन-जीवन को अस्त-व्यस्त करना उचित है क्या ? कदापि नही ! जब गाँधी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे तब भी उन्होंने हिंसात्मक होते आन्दोलन को वापस लेने का फैसला किया था. जबकि अंग्रेजों से हमे आज़ादी छिननी थी, बावजूद इसके गाँधी व अन्य नेताओं ने धैर्य से काम लिया और अहिंसात्मक रूप से आन्दोलन को आगे बढाया. अंततः हमें आज़ादी मिली. वर्तमान परिदृश्य में समुदाय द्वारा जोर-जबर्दस्ती, हिंसा, आगजनी करके सरकार पर अपने मांग को मनवाने का दबाव बनाते देखा जाता है. कुछ संवेदनशील मुद्दों को अगर हम छोड़ दें तो शेष सभी मामलों में इस प्रकार के आन्दोलन के पीछे राजनितिक मीमांसा कार्य करती है. वोट बैंक की राजनीति के चक्कर में सरकारें गाहे-बगाहे इनके मांगों को मान भी लेती है. इससे लोगों का मनोबल भी बढ़ जाता है.
आरक्षण के नाम पर जिस प्रकार से देश के अलग-अलग हिस्सों से भिन्न-भिन्न समुदायों के द्वारा आन्दोलन किये जा रहे हैं वो भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं. सर्वविदित हैं कि पृथक राज्य की माँग को लेकर भी इससे पूर्व देश के अलग-अलग हिस्सों में आन्दोलन होते रहे हैं. कई बार ये आन्दोलन इतना हिंसक रूप ले लेता है कि कई लोगों की जान भी चली जाती है. सरकारी संपत्ति और सरकारी राजस्व की भी हानि देश को झेलना पड़ता है.
आज जरुरत है सृजनात्मक विचारधारा अपनाते हुए देश में व्याप्त बुराईयों को दूर करने का आन्दोलन चलाया जाये. आन्दोलन का मतलव सड़क पर उतरना, आगजनी करना, दुकाने बंद करवाना ही नही होता, बल्कि रचनात्मक कार्यों के द्वारा लोगों का जीवन स्टार को उठाना, समाज में सकारात्मक माहौल कायम करना, सामाजिक बुराईयों के खिलाफ मुहिम चलाना, आन्दोलन का लक्ष्य होना चाहिए. ऐसे आन्दोलन का आह्वान गाँधी जी देशवासियों के किया करते थे. आज फिर से देश में ऐसे रचनात्मक कार्यों को करने की जरुरत महसूस हो रही है.
रवि रौशन कुमार
info.raviraushan@gmail.com
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